पटना. बिहार की सियासत (Politics Of Bihar) में ‘फेस फाइट’ शब्द बेहद प्रचलित हो गया है. ऐसा इसलिए कि महागठबंधन (Grand Alliance) में जीतन राम मांझी (Jitan Ram Manjhi) ने तेजस्वी यादव (Tejaswi Yadav) के चेहरे पर विधानसभा चुनाव (Assembly Election) लड़ने से इनकार किया है. वहीं, कांग्रेस (Congress) को भी उनका नेतृत्व स्वीकार्य नहीं है. दूसरी ओर एनडीए (NDA) के भीतर बीजेपी और जेडीयू (BJP-JDU) में भी ‘चेहरे’ को लेकर घमासान मचा हुआ है. आगामी विधानसभा चुनाव में एनडीए का चेहरा सीएम नीतीश (CM Nitish) रहेंगे या पीएम नरेंद्र मोदी (PM Nrendra Modi)? इसे लेकर राजनीति गरमाई हुई है.
किनके दावों में कितना दम?
हालांकि, बीजेपी और जेडीयू के नेता अपनी पार्टी के चेहरे को ही आगे रखने के मूड में दिख रहे हैं. जबकि इससे इतर अगर वोटिंग पैटर्न और इससे संबंधित आंकड़ों पर गौर करें तो हकीकत को करीब से परख पाएंगे. दरअसल, बड़ा सवाल यह है कि बिहार की सियासत में कौन किसकी जरूरत है? किनके दावों में सही में दम है?
2005 जेडीयू को मिले अधिक वोट
विधानसभा चुनाववार जेडीयू-बीजेपी के आंकड़े.
2010 में जेडीयू को और हुआ लाभ
2015 में अलग लड़ी जेडीयू तो गिर गया वोट शेयर
जबकि वर्ष 2015 का चुनाव बीजेपी और जेडीयू ने अलग-अलग लड़ा. जेडीयू आरजेडी के साथ हो गई. लेकिन, यहां उनके लिए वोट प्रतिशत के साथ ही सीटों का भी जबरदस्त नुकसान हुआ. 101 सीटों पर ही चुनाव लड़ी और 22.6 प्रतिशत वोट शेयर से घटकर 16.8 प्रतिशत वोट ही पा सकी. सीटों की संख्या भी 115 से घटकर महज 71 रह गई.
2015 में बीजेपी का वोट शेयर बढ़ गया
जबकि बीजेपी ने 157 सीटों पर चुनाव लड़ी और 24.4 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 53 सीटों पर जीत हासिल की. साफ है कि उनका वोट प्रतिशत 16.5 प्रतिशत से करीब 8 प्रतिशत बढ़ गया और यह 24.4 प्रतिशत तक पहुंच गया.
2009 के लोकसभा चुनाव में जेडीयू को बम्पर वोट शेयर
दूसरी ओर लोकसभा चुनाव की बात करें तो बीजेपी-जेडीयू ने 2009 का लोकसभा चुनाव साथ लड़ा. इसमें जेडीयू ने 25 सीटों पर फाइट की और 24 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 20 सीटें जीतने में कामयाब रही. वहीं बीजेपी ने 15 सीटों पर लड़ाई लड़ी और 13.9 प्रतिशत वोट पाकर 12 सीट जीतने में सफल रही.
लोकसभा चुनाव में बीजेपी-जेडीयू को वोट शेयर.
2014 में अलग लड़ने पर औंधे मुंह गिरी जेडीयू
वर्ष 2014 में बीजेपी-जेडीयू ने अलग-अलग चुनाव लड़ा तो जेडीयू को यहां नुकसान हुआ और 31 सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद 15.8 प्रतिशत वोट शेयर के साथ महज 2 सीटें ही जीत सकी. जबकि बीजेपी ने इस चुनाव में 29 सीटों पर चुनाव लड़कर 29.9 वोट शेयर अपने खाते में ले गई.
2019 में बीजेपी के साथ आने का जेडीयू को हुआ बड़ा लाभ
2019 के लोकसभा चुनाव में ये दोनों ही पार्टियां एक बार फिर साथ आ गईं. यहां दोनों ने 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ा और साथ आने का सीधा लाभ जेडीयू को मिला. जेडीयू का वोट शेयर पिछले चुनाव के 15.8 प्रतिशत वोट शेयर के मुकाबले बढ़कर 21.8 प्रतिशत वोट हासिल किया और 16 सीटें जीतने में सफल रही. वहीं, बीजेपी का वोट प्रतिशत 29.9 प्रतिशत से घटकर 23.6 रह गया. बावजूद इसके वह 17 में से 17 सीटें जीतने में कामयाब रही.
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि बिहार में बीजेपी-जेडीयू की राह तभी अलग हो सकती है जब दोनों ही पार्टियों को अपनी जीत का भरोसा हो जाए
जब-जब बीजेपी के साथ लड़ी, जेडीयू बढ़ी
इन आंकड़ों का विश्लेषण करें तो साफ पता चलता है कि जब-जब बीजेपी और जेडीयू ने साथ मिल कर चुनाव लड़ा जेडीयू के वोट प्रतिशत में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई. वहीं, दोनों अलग-अलग लड़ी तो जेडीयू के वो प्रतिशत में गिरावट दर्ज हुई और बीजेपी का वोट प्रतिशत बढ़ गया.
हमारे साथ आने से बढ़ी जेडीयू- बीजेपी नेता
आखिर इसकी क्या वजह है? पर बीजेपी के नेता व मंत्री ब्रिज किशोर बिंद कहते हैं कि समाज के जातीय समीकरण को समझ सबको हिस्सेदारी दी, जिसका फ़ायदा वोट प्रतिशत में मिला. वहीं, अरुण सिन्हा कहते हैं कि नीतीश कुमार बीजेपी के साथ मिलने की वजह से आगे बढ़ते रहे हैं.
नीतीश की वजह से बीेजेपी को फायदा- जेडीयू
ज़ाहिर है बीजेपी जेडीयू को ये अहसास कराना चाहती है कि बात वोट प्रतिशत हो या चुनावी जीत की बात, बीजेपी के साथ रहने से मिलना जेडीयू के लिए लाभदायक रहा है. हालांकि जेडीयू नेता और मंत्री महेश्वर हज़ारी कहते हैं कि नीतीश कुमार के साथ की वजह से बीजेपी को फायदा हुआ.
बहरहाल आंकड़ों की हकीकत एक तरफ है और सियासत की जरूरत दूसरी ओर. ये आंकड़े तो फिलहाल यही बताते हैं कि ज़रूरत दोनो को एक दूसरे की है. हालांकि आने वाले समय में राजनीति अंदाज में आगे बढ़ेगी, ये देखना दिलचस्प होगा.